आचार्यों का प्रशिक्षण

आचार्यों का प्रशिक्षण

 
आचार्यों का प्रशिक्षण
(1) प्रशिक्षण- हमारे वि़द्यालय के सभी आचार्य-दीदी शासन के नियमानुसार प्रशिक्षित होना चाहिए।
प्राथमिक में D.Ed,माध्यमिक में स्नातक B.Ed, उच्चतर माध्यमिक में स्नातकोत्तर B.Ed
(2) व्यवहारिक प्रशिक्षण- अकादमिक प्रशिक्षण होने के बाद भी उन्हें अच्छे
(1) शिक्षक के नाते व्यवहारिक प्रशिक्षित होना चाहिए।
(2) अच्छे शिक्षक के श्रेष्ठ गुण उन्हें बताना होगा।
(3) श्रेष्ठ शिक्षकों की जीवनीयाँ उन्हें पढ़ने के लिए देना।
(3) आधुनिक तकनीकी का प्रशिक्षण (1) कम्प्यूटर (2) इन्टरनेट आदि-आदि
(4) विषयानुसार प्रशिक्षण- अपने विषय में तज्ञ होने के लिए आचार्य को विषय का गहन प्रशिक्षण देना।
(5) आधारभूत विषयों का प्रशिक्षण- प्रत्येक आचार्य-दीदी किसी न किसी एक विषय का प्रशिक्षण प्राप्त करे।
(6) योजना के विषयों का प्रायोगिक प्रशिक्षण- जैसे, मातृगोष्ठी, वन्दना, अभिभावक सम्मेलन, कार्यक्रम में अतिथि आगमन से प्रस्थान व कार्यक्रम की समीक्षा तक, देश दर्शन इन सभी विषयों का व्यवहारिक प्रशिक्षण। इन सब विषयों का मासिक वर्ग में प्रशिक्षण देना चाहिए।
(7) आचार्य/दीदियों का नैतिक सम्बोधन- (1) आचार्य/दीदियों द्वारा विद्यालय में आपसी बोल-चाल में मानक हिन्दी का प्रयोग। (2) भैया/बहिनों के मध्य बहुत मर्यादित व्यवहारिक बातचीत होनी चाहिए। इस हेतु मासिक वर्गों में ‘नैतिक मूल्य’ विषय पर किसी शिक्षाविद् से प्रबोधन कराना।
(8) सामाजिक गतिविधियों में आचार्य की भूमिका- आचार्य को सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता करने हेतु प्रेरित करना।
(9) मातृ संगठन (संघ के प्रशिक्षण)- आचार्य को संघ का प्रशिक्षण होना चाहिए। कम से कम प्राथमिक वर्ग का प्रशिक्षण होना ही चाहिए। प्रधानाचार्य संघ शिक्षा वर्ग प्रशिक्षित हो ऐसा प्रयास करना।
(10) न्यूनतम संसाधनों पर जीवन जीने की कला का विकास- आचार्य परिवार को ग्राम्य जीवन का दर्शन कराना। और कम से कम संसाधन से अपना आदर्श जीवन जीना। यह अभाव के कारण नहीं स्वभाव के कारण बनें।
(11) साहसिक यात्रा- साहसिक यात्राएँ अनुभव व आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
(12) पारिवारिक भाव का विकास- विद्यालय में कार्यरत सभी आचार्यों में परिवार भाव का होना। आचार्य परिवार मिलन कार्यक्रम।
(13) आचार्य कल्याणकारी योजनाएँ- आचार्य सुरक्षा न्यास, बीमा, चिकित्सा बीमा, उपादान में अनिवार्य रूप से सहभागिता होना चाहिए। इसलिए उन्हें योजनाओं से अवगत करायें।
भवन निर्माण या उसके बेटा/बेटी की शादी है उसमें सहयोग करें समितियों को आर्थिक पक्ष का भी विकास करना।
(14) सुन्दर लेखन एवं शुद्ध लेखन का विकास। अंगे्रजी सम्भाषण एवं वैदिक गणित का अभ्यास भी होना चाहिए।
(15) 5 दिवसीय अभ्यास वर्ग-1
(16) आचार्यों का प्रधानाचार्य द्वारा मूल्यांकन। शैक्षिक /व्यवस्थागत/दायित्व अनुसार हो।